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Friday, April 13, 2018

Poem-सावन की बारिश में


उस दिन बालों को लेहरा करके निकली थी मुझसे मिलने को
मत पूछो हाल उस बादल का जो बरस पड़ा थे उस पर छम से

ज्यों घूरा उसने बादल को कुछ अपने ऐसे लहजे से
देखकर बिजली चमकी थी उसकी नजरों के तेवर से

बादल भी था कुछ आवारा सोचा उसने कुछ उपहास करूं
वो भी कुछ कम भी न थी भावों को उसके भाप लिया।
बोली मुश्करा के जाने दो अच्छा तुमको मॉफ  किया

फ़िर बोली बो उस बादल को अव जाने भी दो मुझको भी
बो पागल फिर से डाटेगा जो बैठा  है वहां पर  कब से 
एक वात कहूं उस पागल की कुछ अलग उसका पागलपन
वो अच्छा है वो सच्चा है दिल में उसके कोई खोट नही 
समझा है मेंने उसको कुछ. यू
वो समझता है में
समझती हूँ
वो सुनता है
मैं सूनती हूं

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